उड़द दाल के फायदे Urad dal benefits
सामान्य जानकारी उड़द :-- इस का वैज्ञानिक नाम Vigna mungo होता है इसकी फैमिली लेग्यूमिनेसी है,
इसमे गुणसूत्रों की संख्या 2n=22 होती है|
और इसका उतपति स्थल भारत को माना जाता है, उड़द स्वपरागण होता है |
इस फसल के प्लांट c3 प्रकार के होते है, उड़द की खेती भारत की एक प्रमुख दलहनी फसल है|
उड़द की खेती खरीफ और जायद के रूप में की जा सकती है|
यह आहार के रूप में अत्यंत पौष्टिक होती है
जिसमे प्रोटीन 24 प्रतिशत, कार्बोहाइड्रेट 60 प्रतिशत ,वसा 1.5% और कैल्सियम व फास्फोरस का अच्छा स्रोत है|
उड़द की खेती से भूमि को भी संरक्ष्ण और उर्वरक व अन्य पोषक तत्वों की पूर्ति भी होती है|
उड़द की फसल को किसान भाई मिटटी के लिए हरी खाद के रूप में भी प्रयोग कर सकते है|
◆बॉस ने 1932 में इसकी दो उपजातीय बताई ---
1. विग्ना मुंगो वैराइटी नाइजर--- इस जाति के पौधे जल्दी पक जाते है|
2.विग्ना मुंगो वेरायटी विरिकिस-- इस जाति के पौधे देरी से पकने वाले होते है |
◆ उड़द के लिए उपयुक्त भूमि --
उड़द की खेती बलुई मिटटी से लेकर गहरी काली मिट्टी जिसका पी एच मान 6.5 से 7.8
तक में सफलतापूर्वक की जा सकती है|
उड़द का अच्छा उत्पादन लेने के लिए खेत का समतल होना और खेत से जल निकास की उचित व्यवस्था का
होना अति आवश्यक है|
◆खेत की तैयारी -- खेत की अच्छी तैयारी परिणामस्वरूप अच्छा अंकुरण व फसल में एक समानता के लिए बहुत जरूरी है|
भारी मिट्टी की तैयारी में अधिक जुताई की आवश्यकता होती है| सामान्यतः 2 से 3 जुताई करके खेत में पाटा
चलाकर समतल बना लिया जाता है
तो खेत बुवाई के योग्य बन जाता है| ध्यान रहे कि जल निकास नाली की व्यवस्था अवश्य हो|
◆बुवाई का समय -- मानसून के आगमन पर या जून के अंतिम सप्ताह में पर्याप्त वर्षा होने पर बुवाई करे|
इसके लिए कतारों की दूरी 30 सेंटीमीटर और पौधों से पौधों की दूरी 10 सेंटीमीटर रखे एवं बीज 4 से 6 सेंटीमीटर की गहराई पर बोये|
ग्रीष्मकालीन में फरवरी के तीसरे
सप्ताह से अप्रैल के प्रथम सप्ताह तक बुवाई करे|
◆बीजशोधन -- मिटटी और बीज जनित रोगों से बचाव के लिए 2 ग्राम थायरम और 1 गाम
कार्बेन्डाजिम मिश्रण 2:1 प्रति किलोग्राम बीज या
कार्बेन्डाजिम 2.5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से शोधित कर लें| इसके बाद बीज को
इमिडाक्लोप्रिड 70 डब्लू एस से 7 ग्राम प्रति किलोग्राम
बीज के हिसाब से उपचारित करें| बीज शोधन कल्चर से उपचारित करने के 2 से 3 दिन पूर्व करना चाहिए|
●जैविक बीजोपचार-- राइजोबियम कल्चर
का एक पैकेट 250 ग्राम प्रति 10 किलोग्राम बीज के लिए पर्याप्त होता है| 50 ग्राम गुड़ या
शक्कर को 1/2 लीटर जल में घोलकर उबालें व ठण्डा कर लें|
ठण्डा हो जाने पर ही इस घोल में एक पैकेट राइजोबियम कल्चर मिला लें| बाल्टी में 10 किलोग्राम
बीज डाल कर अच्छी तरह से मिला लें ताकि कल्चर के
लेप सभी बीजों पर चिपक जाएं उपचारित बीजों को 8 से 10 घंटे तक छाया में फेला देते हैं|
उपचारित बीज को धूप में नहीं सुखाना चाहिए| बीज उपचार दोपहर में करें ताकि शाम को या दूसरे
दिन बुआई की जा सके| कवकनाशी या कीटनाशी
आदि का प्रयोग करने पर राइजोबियम कल्चर की दुगनी मात्रा का प्रयोग करना चाहिए और बीजोपचार कवकनाशी-कीटनाशी तथा राइजोबियम कल्चर
के क्रम में ही करना चाहिए|
◆बीज की मात्रा -- खरीफ में उड़द का बीज 12 से 15 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर और
ग्रीष्मकालीन बीजदर 20 से 25 किलोग्राम प्रति
हेक्टेयर की दर से बोना चाहिये|
◆उन्नत किस्में उड़द--
•पीला चितकबरा रोग रोधी किस्में- वी बी एन- 6, वी बी जी- 4-8, को- 6, माश- 114, माश- 479,
आई पी यू- 02-43, पंत उर्द- 31,
ए डी टी- 4, ए डी टी- 5, वांबन- 1 और एल बी जी- 20 आदि|
•खरीफ हेतु- के यू- 99-21, मधुरा मिनीमु- 217, के यू- 309 और ए के यू- 15 आदि|
•रबी हेतु- ए के यू- 4, के यू- 301, टी यू- 94-2, आजाद ऊर्द- 1, के यू- 309, के यू- 92-1),
शेखर- 2, के यू- 300, मास- 414,
एल बी जी- 402 आदि|
•शीघ्र पकने वाली- पंत उर्द- 40, प्रसाद, वी बी एन- 5 आदि|
•पंत उड़द 30 :-
यह किस्म बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़,
हिमाचल प्रदेश एवं असम राज्यों में खेती करने के लिए उपयुक्त है।
इसकी खेती खरीफ और जायद दोनों मौसम में की जा सकती है।
यह किस्म मृदु रोमिल आसिता एवं पीले मोजेक रोग के लिए प्रतिरोधी है।
फसल को पक कर तैयार होने में 75 से 80 दिनों का समय लगता है।
प्रति एकड़ खेत से 4 से 4.8 क्विंटल तक पैदावार होती है।
•पंत उड़द 31 :-
इस किस्म की खेती बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, राजस्थान,
हिमाचल प्रदेश, पश्चिम बंगाल एवं आंध्र प्रदेश में की जाती है।
इस किस्म के पौधों की लंबाई छोटी होती है और इसके दाने मध्यम आकार के एवं भूरे रंग के होते हैं।
फसल को पकने में 70 दिनों का समय लगता है।
यह किस्म पीत शिरा विषाणु रोग के लिए प्रतिरोधी है।
प्रति एकड़ भूमि से 3.2 से 4 क्विंटल तक पैदावार होती है।
•उत्तरा : - पूर्वी मैदानी क्षेत्रों एवं उत्तर पश्चिमी मैदानी क्षेत्रों में खेती के लिए यह उपयुक्त किस्म है।
बिहार, झारखंड, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान,
उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पश्चिम बंगाल एवं असम में इस किस्म की प्रमुखता से खेती की जाती है।
इस किस्म के पौधे विषाणु रोग के लिए प्रतिरोधी हैं।
प्रति एकड़ खेत से 4 से 6 क्विंटल तक पैदावार होती है।
•कृष्णा : - इस किस्म की खेती भारी मिट्टी में की जा सकती है। इस किस्म के पौधों की लंबाई मध्यम होती है।
इसके दाने बड़े एवं भूरे रंग के होते हैं।
फसल को पक कर तैयार होने में 90 से 110 दिनों का समय लगता है। प्रति एकड़ खेत से 4 से 4.8 क्विंटल
उपज प्राप्त होती है।।
◆उर्वरक की मात्रा उड़द
--- एकल फसल के लिए 15 से 20 किलोग्राम नत्रजन, 40 से 50 किलोग्राम फास्फोरस, 30 से 40 किलोग्राम
पोटाश, प्रति हेक्टेयर
की दर से अन्तिम जुताई के समय खेत में मिला देना चाहिए| उर्वरकों की मात्रा मिटटी परीक्षण के आधार पर देना चाहिए|
नाइट्रोजन और फासफोरस की पूर्ति के लिए 100 किलोग्राम डी ए पी प्रति हेक्टेयर का प्रयोग कर सकते है|
उर्वरकों को अन्तिम जुताई के समय ही बीज से 5 से 7 सेंटीमीटर की गहराई तथा 3 से 4 सेंटीमीटर साइड पर ही प्रयोग करना चाहिए|
◆सिंचाई प्रबन्धन --- आमतौर पर खरीफ की फसल को सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है|
यदि वर्षा का अभाव हो तो एक सिंचाई फलियाँ बनते
समय अवश्य कर देनी चाहिए| उड़द की फसल को जायद में 3 से 4 सिंचाई की आवश्यकता होती है|
प्रथम सिंचाई पलेवा के रूप में और अन्य सिंचाई15 से 20 दिन के अन्तराल में फसल की आवश्यकतानुसार करना चाहिए|
पुष्पावस्था तथा दाने बनते समय खेत में उचित नमी होना अति आवश्यक है|
◆खरपतवार नियंत्रण -- बुआई के 25 से 30 दिन बाद तक खरपतवार फसल को अत्यधिक नुकसान पहुंचाते हैं|
यदि खेत में खरपतवार अधिक हैं,
तो 20 से 25 दिन बाद एक निराई कर देना चाहिए| जिन खेतों में खरपतवार गम्भीर
समस्या हों वहां पर बुआई से एक दो दिन पश्चात पेन्डीमिथालीन,
की 0.75 से 1.00 किलोग्राम सक्रिय मात्रा को 400 से 600 लीटर पानी में घोलकर एक हेक्टेयर में
छिड़काव करना लाभप्रद रहता है|
◆उड़द के प्रमुख कीट ---
1.पिस्सू भृग (गैलेरूसिड भृग)- यह कीट सुबह के समय नये पौधों की पत्तियों पर छेद बनाते हुए उन्हें खाता है
और दिन में मिटटी की दरारों में छिप जाता है|
वर्षा ऋतु में इस कीट का गुबरैला जड की गाँठों में सुराग कर जड़ों में घुस जाता है एवं
इनको पूरी तरह खोखला कर देता है| इस कीट के द्वारा जड
की गाँठों के नष्ट होने पर उड़द के उत्पादन में 60 प्रतिशत तक हानि देखी गई है|
यह मूंग मोजेक विषाणु रोग का भी वाहक है|
रोकथाम उड़द-
मोनोक्रोटोफॉस 10 मिलीलीटर प्रति किलोग्राम बीज या डाईसल्फोटॉन 5 जी,
40 ग्राम प्रति किलो ग्राम बीज के हिसाब से बीजो को उपचारित करे|
फोरेट 10 जी की 10 किलोग्राम या डाईसल्फोटॉन 5 जी 20 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से भुरकाव करना चाहिए|
2.पत्ती मोड़क कीट- इल्लियां पत्तियों को ऊपरी सिरे से मध्य भाग की ओर मोड़ती है|
यही इल्लियां कई पत्तियों को चिपका कर जाला भी बनाती है|
इल्लियां इन्हीं मुड़े भागों के अन्दर रहकर पत्तियों के हरे पदार्थ क्लोरोफिल को खा जाती हैं|
जिससे पत्तियां पीली सफेद पड़ने लगती है|
रोकथाम- क्विनालफॉस दवा की 30 मिलीलीटर मात्रा 15 लीटर पानी की दर से छिडकाव करें, आवश्यकता होने पर दूसरा छिड़काव
पहले छिड़काव से 15 दिन बाद करें|
3.एफिड-
निम्फ और व्यस्क कीट बडी संख्या में पौधो की पत्तियों, तनों, कली एवं फूल पर लिपटे रहते है,
और फूलों का रस चूसकर पौधों को हानि पहुँचाते हैं|
नियंत्रण- फसल को डायमिथिएट 30 ई सी, 2 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी के साथ घोल कर छिड़काव करें|
4.सफेद मक्खी- दोनो ही पत्तियों की निचली सतह पर रहकर रस चूसते रहते हैं|
जिससे पौधे कमजोर होकर सूखने लगते हैं|
यह कीट अपनी लार से विषाणु पौधों पर पहुंचाता है और यलो मौजेक नामक बीमारी फैलाने का कार्य करते हैं|
नियंत्रण- पीले रोग ग्रस्त पौधों को उखाड़ कर नष्ट कर दें| फसल में डायमिथिएट 30 ई सी
2 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी के
साथ घोल कर छिड़काव करें|
◆रोग और रोकथाम उड़द------
1.पीला चित्तेरी रोग---
•पीला चित्तेरी रोग में सफेद मक्खी के रोकथाम हेतु आक्सीडेमाटान मेथाइल 0.1 प्रतिशत या डाइमिथिएट 0.2 प्रतिशत प्रति हेक्टयर
2 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी और सल्फेक्स 3 ग्राम प्रति लीटर का छिड़काव 500 से 600 लीटर
पानी में घोलकर 3 से 4 छिड़काव 15 दिन
के अंतर पर करके रोग का प्रकोप कम किया जा सकता है|
• रोगरोधी किस्में जैसे- पंत उर्द- 19, पंत उर्द- 30, पी डी एम- 1 ( वसन्त ऋतु), यू जी- 218,
पी एस- 1, पी यू- 94-1 (उत्तरा ) नरेन्द्र उर्द- 1,
उजाला, प्रताप उर्द- 1, शेखर- 3 (के यू- 309) इत्यादि उगाएं|
2.मौजेक मोटल, पर्ण कुंचन----
• रोकथाम हेतु इमिडाक्लारोप्रिड 70 डब्लू एस 5 ग्राम प्रति किलोग्राम की दर से बीजोपचार करें|
•डाईमिथिएट 30 ई सी, 2 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी की दर से छिडकाव रोगवाहक की रोकथाम के लिये करना चाहिए|
3.चूर्णी कवक- --- •फसल पर घुलनशील गंधक 80 डब्ल यू पी, 3 ग्राम प्रति लीटर या कार्बेन्डाजिम 50 डब्लू पी,
1 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें|
•रोगरोधी किस्में जैसे- सी ओ बी जी-10, एल बी जी- 648, एल बी जी- 17, प्रभा, आई पी यू- 02-43, ए के यू- 15
और यू जी- 301 उगानी चाहिए|
◆कटाई एवं मड़ाई उड़द---
जब 70 से 80 प्रतिशत फलियां पक जाएं, हँसिया से कटाई आरम्भ कर देना चाहिए| तत्पश्चात बण्डल बनाकर
फसल को खलिहान में ले आते हैं|
3 से 4 दिन सुखाने के पश्चात श्रेसर द्वारा भूसा से दाना अलग कर लेते हैं|